उत्पल वंश की इतिहास की जानकारी मुख्य रूप से कल्हण की पुस्तक राजतरंगिणी के माध्यम से मिलती है, इस पुस्तक में 800 से 1200 ई० तक के कश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है| राजतरंगिणी के अनुसार कश्मीर में तीन प्रमुख राजवंश हुए जिन्होंने 800 से 1200 ई० तक कश्मीर में शासन किया| कार्कोट राजवंश > उत्पल राजवंश > लोहार राजवंश| यह संस्कृत भाषा में लिखा गया है और इसमें 8000 श्लोक दीया गया है|
उत्पल वंश
उत्पल वंश की स्थपाना अवन्ती वर्मन के द्वारा किया गया| इसके शासनकाल में सुय्य नामक एक अभियंता (इंजीनियर) था जिसकी मदद से कृषि व्यवस्था को सुधारने के लिए कई नहरों का निर्माण करवाया|
इसने अपने नाम पर अवन्तिपुरा तथा सुय्य के नाम पर सुय्यापुरा नामक नगर वासया| कवि रत्नाकर और कवि आनंद वर्धन को आश्रय देने का श्रेय भी अवन्ती वर्मन को दिया जाता है|
शंकर वर्मन
यह अपने जीवनकाल में युद्ध करता रहा जिसकारण नागरिकों के ऊपर अतिरिक्त कर बढ़ा दिया जिससे यह लोगो के बीच अलोपप्रिया हो गया और बाद इसे सत्ता का त्याग करना पड़ा|
गोपाल वर्मन
शंकर वर्मन के समय उत्पन अव्यवस्था बना रहा, इसी का लाभ उठाकर इसके मंत्री यशस्कर सत्ता अपने हाथों में ले लिया|
पर्भगुप्त
यशस्कर के मृत्यु के बाद इसका पर्भगुप्त राजा बना, किन्तु पर्भगुप्त अयोग्य था इसलिए दुसरे पुत्र छेमगुप्त इसे हटाकर सत्ता अपने हाथों में ले लिया|
छेमगुप्त
छेमगुप्त का विवाह हिन्दू शाही वंश की राजकुमारी दिद्दा के साथ हुआ| कुछ समय बाद छेमगुप्त की भी मृत्यु हो गया और इनके दोनों पुत्र छोटे थे| इसलिए रानी दिद्दा ने संरक्षिका रूपी शासन किया|
दिद्दा (संरक्षिका)
रानी संरक्षिका रूपी शासन करनेवाली भारत की पहली महिला थी, इनकी मृत्यु के बाद कोई योग्य शासक नहीं रहा इसलिए दिद्दा की भितिजे संग्राम राज्य ने ने पुरे राज्य के सता को अपने हाथो में ले लिया| और एक नए राजवंश लोहार वंश की स्थापना किया|