कार्कोट वंश
दुर्लभ वर्धन द्वारा स्थापित कार्कोट वंश की जानकारी मुख्य रूप से कल्हण की पुस्तक राजतरंगिणी के माध्यम से मिलती है, संस्कृत भाषा में लिखा गया इस पुस्तक में 8000 श्लोक हैं जिससे 800 से 1200 ई० तक के कश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है| इस पुस्तक के अनुसार कश्मीर में तीन प्रमुख राजवंश हुए जिन्होंने 800 से 1200 ई० तक कश्मीर में शासन किया| इस दौरान कश्मीर में तीन राजवंशों कार्कोट राजवंश > उत्पल राजवंश > लोहार राजवंश के शासकों ने शासन किया|
दुर्लाभक (632 से 682 ई०)
अगला शासक दुर्लभ वर्धन का पुत्र दुर्लाभक बना| सिक्कों पर इसका नाम श्री प्रताप मिलता है तथा प्रतापपुर नामक एक नगर वसाया और प्रतापदित्य की उपाधि धारण किया| इसके तीन पुत्र था, चन्द्रापीठ, मुक्ततापीठ और तारापीठ|
चन्द्रापीठ
इसके समय में जब तुर्कों और अरबों ने आक्रमण किया तो सहायता के लिए अपना एक राजदूत चीन भेजा| चन्द्रापीठ ने आक्रान्ताओं का सामना कर लिए लेकिन कहा जाता है की इसके छोटे भाई तारापीठ ने जादू-टोना करवाकर चन्द्रापीठ की हत्या करवा दिया और खुद तारापीठ राजा बन गया| विजयनगर साम्राज्य
ललितादित्य मुक्तापिठ
यह कार्कोट वंश का सबसे प्रतापी शासक ललितादित्य मुक्तापिठ ने तुर्क, कम्बोज और कन्नौज शासक यशोवर्मन तीनो को पराजित किया| यशोवर्मन को हारने के बाद यशोवर्मन के दरवार से दो प्रसिद्ध विद्वान भवभूति और वाक्पति राज को कश्मीर ले आया|
हिन्दू धर्म के अनुयायी ललितादित्य मुक्तापिठ एक विजेता के साथ-साथ एक निर्माता भी था, इन्होने कई हिन्दू मंदिरों का निर्माण करवाया जैसे की मार्तंड मंदिर, इसके अलावे बौद्ध धार्मिक स्थलों का भी निर्माण करवाया साथ ही परिहासपुर नामक एक नगर भी वसाया|
जयादित्य विनयापीठ (770 से 810 ई०)
इसने कन्नौज शासक वज्रआयु को हराकर कन्नौज तक अपनी सीमा का विस्तार किया| इसके दरवार में झिर, उदभट्ट एवं दामोदर गुप्त जैसे विद्वान इसके दरवार में रहते थे| इसके मृत्यु के बाद कार्कोट वंश का अंत हो गया|