गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद गुप्तों के अधीन छोटे-छोटे राज्य अपने-आप को स्वतंत्र घोषित कर लिए जिसमे गुजरात के चालुक्य, जेजाजभुक्ति के चंदेल, मध्य भारत के कलचुरी, शागाम्ब्री के चौहान और मालवा के परमार आदि प्रमुख है गुर्जर प्रतिहार वंश इन्ही में से एक था| जिस समय यह स्वतंत्र हुए उस समय समय उत्तर भारत के अधिकांस राजपूत वंश के थे, इसलिए इस युग को राजपूत कुलीन इतिहास कहा जाता है|
पृथ्वी राज के दरवारी कवि चन्द्रबरदाई ने अपने पुरस्तक “पृथ्वी राजरासो” में बताया है की राजपूत आबू पर्वत (माउंट आबू) पर वशिष्ट मुनि के अग्निकुण्ड से उत्पन हुए है| यह उल्लेख प्रतिहार, चालुक्य, चौहान और परमार वंश के शासकों के बारे में किया गया है वहीं कुछ विद्वानों का मानना है की ये भगवन लक्ष्मण के वंशज थे|
गुर्जर प्रतिहार वंश (800 से 1200 ई०)
प्रतिहार वंश के शासक गुर्जरों के सहायक शाखा से संबंधित थे इसलिए इन्हें गुर्जर प्रतिहार वंश कहा गया है| अग्निकुण्ड से उत्पन राजपूतों में गुर्जर प्रतिहार वंश सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए| गुर्जरों का प्रथम उल्लेख चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय के एहोल से मिलता है| वर्तमान समय की बात करे तो यह गुजरात और राजस्थान के क्षेत्र में निवास करते है| यही गुर्जर आगे चलकर प्रतिहार से संवंधित हो गए इसलिए इसे गुर्जर प्रतिहार वंश कहा जाता है|
गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना वैसे तो हरिशचंद्र द्वारा किया गया था किन्तु इस वंश का वास्तविक संस्थापक नागभट्ट प्रथम को माना जाता है| इसका मुख्य कारण कारण यह हो सकता है की नागभट्ट प्रथम एक शक्तिशाली था और इन्होने लम्बे समय तक अरबों को सिंध से आगे बढ़ने से रोक रखा था| जिसका उल्लेख ग्वालियर अभिलेख में किया गया है|
वस्तराज
यह भी का एक शक्तिशाली शासक था और इसे भी गुर्जर प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है| अगर प्रश्न में गुर्जर प्रतिहार वंश का वास्तिक संस्थापक पूछा जाए और विकल्प में नागभट्ट प्रथम और वस्तराज दोनों दिया हो तो उत्तर के वस्तराज होगा| वस्तराज ने पाल शासक धर्मपाल पर आक्रमण किया उसे युद्ध में हरा दिया, फिर राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने वस्तराज पर आक्रमण किया वस्तराज को युद्ध में हरा दिया| चौहान वंश
इन्ही तीन राजवंश गुर्जर प्रतिहार वंश, पाल वंश और राष्ट्रकूट वंश के मध्य काफी लम्बे समय तक संघर्ष चलता रहा जिसे त्रिपक्षीय संघर्ष के नाम से जाना जाता है| इस संघर्ष में पाल वंश सबसे कमजोर वंश था, राष्ट्रकूट वंश जोकि गुर्जर प्रतिहार वंश से शक्तिशाली था किन्तु आन्तरिक कलह के कारण कमजोर हो गया अंतत: गुर्जर प्रतिहार वंश त्रिपक्षीय संघर्ष को जीत लिया|
नागभट्ट द्वितीय
नागभट्ट द्वितीय वस्तराज का पुत्र था इसने कनौज पर अधिकार कर उसे अपनी राजधानी बनाया लेकिन कुछ समय बाद ही राष्ट्रकूट शासक गोविन्द तृतीय नागभट्ट द्वितीय को युद्ध में पराजित कर दिया|
मिहिरभोज प्रथम
मिहिरभोज प्रथम को सबसे पहले पाल शासक धर्मपाल ने पराजित किया फिर राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने भी मिहिरभोज प्रथम को पराजित किया| खो चुके अपने प्रतिष्ठा को वापस पाने के लिए मिहिरभोज प्रथम राष्ट्रकूट शासक कृष्ण द्वितीय को पराजित कर मालवा पर अधिकार कर लिया|
यह वैष्णव धर्म का अनुयायी था इन्होने आदिवराह एवं प्रभात की उपाधि धारण किया, जोकि इनके द्वारा चलाये गए चाँदी के सिक्के “द्रम्म” पर अंकित है|
महेंद्र पाल
अपने पिता मिहिरभोज प्रथम के अपमान का बदला लेने के लिए राष्ट्रकूट शासक इंद्र तृतीय को युद्ध में पराजित किया| महेंद्र पाल ने परम भट्टाकर , महाराजाधिराज और परमेश्वर की उपाधि धारण किया| इसके शासनकाल में राजनितिक और सांस्कृतिक का अभूतपूर्व विकास हुआ|
प्रसिद्ध विद्वान राजशेखर जोकि महेंद्र पाल के गुरु भी थें इसी के दरवार में रहते थे, इन्होने ने कई पुस्तकों की रचना किए कर्पुर मंजरी, काव्य मीमांसा, बाल रामायण, भूवनकोश, हरविलास, विद्धशाल भंदिका, बाल भारत आदि|
महिपाल
राष्ट्रकूट शासक इंद्र तृतीय ने अपने पिछले हार का बदला लेने के लिए महिपाल पराजित किया और कनौज को बहुत ही बुरी तरह से लुटा| इस हार के बाद गुर्जर प्रतिहार वंश धीरे-धीरे अपने पतन की ओर जाने लगा|
इनके दरवारी कवि राजशेखर ने इसे आर्यवर्त का महाराजधिराज कहते थें| इसी शासनकाल में बग़दाद निवासी अलमसुदी भारत आया था|
गुर्जर प्रतिहार वंश का पतन
महिपाल के बाद महेन्द्रपाल द्वितीय, देवालय, विनायक पाल द्वितीय,महिपाल द्वितीय जैसे कई कमजोर शासक आए जोकि की अपने प्रतिद्वंदी राष्ट्रकूट का सामन नहीं कर पाए और 963 ई० में जब राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय ने प्रतिहार पर आक्रमण किया तो गुर्जर प्रतिहार वंश का विघटन और तेजी से होने लगा| इसके कई छोटे-छोटे राज्य अपने स्वतंत्रता की घोषणा करने लगे जिसे की गुर्जर प्रतिहास के पूर्व शासकों ने एक-एक को जोड़कर अपना साम्राज्य स्थापित किया था|
1018 ई० में जब महमूद गजनवी ने इनके राज्य पर आक्रमण किया तो गुर्जर प्रतिहार शासक राजपाल ने भाग गया और बिना युद्ध किये ही महमूद गजनवी ने उसके राज्य पर अधिकार कर लिया| इस बात से क्रोधित होकर चंदेक शासक विद्याधर ने एक योजना के तहद राजपाल को ढूंडवाकर उसे हत्या करवा दिया और विद्याधर स्वयं महमूद गजनवी के साथ युद्ध किया| मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण
महमूद गजनवी जोकि अपने जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारा था उसने विद्याधर के साथ दो बार युद्ध किया| पहला युद्ध अनिर्णायक रहा और जब दूसरी बार युद्ध किया तो दूसरी भी हरा नहीं पाया अंततः मजबूर महमूद गजनवी विद्याधर के साथ संधि कर लिए इस संधि के तहत महमूद गजनवी विद्याधर को 15 किला दिया इस प्रकार इस युद्ध का अंत हो गया|
त्रिलोचन पाल
राजपाल भागते समय 1018 ई० सत्ता अपने पुत्र त्रिलोचन पाल के हाथो में सौप गया था जिसे 1019 ई० में महमूद गजनवी ने हरा दिया| इस वंश का अंतिम शासक यशपाल रहा इसके साथ ही इस वंश का पतन हो गया|
निष्कर्ष
गुर्जर प्रतिहार वंश के शासकों ने काफी लम्बे समय तक शासन किया और भारत को विदेशी आक्रमणकारियों से सुरक्षित रहा अतः भारत में द्वारपाल की भूमिका निभाई| शायद यही कारण रहा की पतन के बाद कई विदेश अक्र्मंकारियों ने भारत में अपने पैर जमा लिया|