मालवा के परमार वंश
परमार वंश के पूर्व शासक राष्ट्रकूट वंश के अधीन सामन्त थे, जिसकी पुष्टि किया गया है किन्तु कुछ विद्वानों को मानना है की यह गुर्जर प्रतिहार वंश के सामन्त थे| श्री हर्ष ने परमार को राष्ट्रकूटों की अधीनता से स्वतंत्र करवाया| खोट्तिम नामक जनजाति को हराकर उसके संपत्ति को लुटा और अपने साम्राज्य का विस्तार किया|
श्री हर्ष के दो पुत्र थे मुंज और सिन्धुराज, मुंज का पूरा नाम वाक्पति मुंज था और यह दत्तक पुत्र था जिसे श्री हर्ष ने गोद लिया था उसके बाद सिन्धुराज जोकि उसका अपना पुत्र था का जन्म हुआ|
वाक्पति मुंज
श्री हर्ष के मृत्यु के बाद वाक्पति मुंज राजा बना, इस समय राजधानी उज्जैन थी| अमोघवर्ष एवं पृथ्वीराज बल्लभ जैसी उपाधियाँ धारण करने वाले वाक्पति मुंज ने चालुक्य नरेश तैलप द्वितीय को 6 बार हराया किन्तु सातवीं बार में तैलप द्वितीय ने वाक्पति मुंज को पराजित कर उसकी हत्या कर दिया|
वाक्पति मुंज ने कई सारे झीलों का निर्माण करवाय था जिसमे मुंज झील प्रमुख है| कैथोम दानपात्र से ज्ञात होता है की वाक्पति मुंज ने हूणों को भी युद्ध में हराया था| शुंग वंश के उदय का कारण
सिन्धुराज (994 से 1000 ई०)
इसने साहसांक और कुमार नारायण की उपाधि धारण किया| पद्मगुप्त जोकि मुंज और सिन्धुराज दोनों के राजकवि थे इन्होने नवसाहंसाक चरितम की रचना किए| जिससे सिन्धुराज के जीवन शैली के बारे में जानकारी मिलती है|
राजभोज (1000 से 1025 ई०)
इन्होने अपनी राजधानी उज्जैन से धरा (धारा) स्थापित किया और राजधानी धारा का विस्तार किया और वहाँ भोजशाला नामक एक संस्कृत विद्यालय का निर्माण करवाया| इस भोजशाला की दीवारों पर आज भी संस्कृत भाषा में श्लोक लिखा है| इनके शासनकाल में धरा शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र था| धरा के ही निटक भोज नामक एक नगर बनाया और भोज सागर झील का निर्माण करवाया|
राजभोज ने कल्याणी के चालुक्य और अन्हील्वाड के चालुक्य दोनों का हराकर अपनी सत्ता स्थापित किया लेकिन चन्देल शासक विद्याधर के साथ युद्ध में हार गए| राजभोज ने 1008 ई० में महमूद गजनवी के विरुद्ध शाही शासक आन्नद पाल को सैनिक सहायता दी थी|
राजभोज के शासन के अंतिम दिनों में गुजरात के चालुक्य नरेश भीम प्रथम और कलचुरी नरेश लक्ष्मिकर्ण ने संयुक्त युप से मालवा के ऊपर आक्रमण कर दिया और इनकी राजधानी धरा (धारा) को लुट लिया इसी युद्ध के दौरान राजाभोज की मृत्यु हो गयी|
यह परमार वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक के साथ-साथ महान कवि भी थे इसलिए इन्हें कविराज कहा गया| इनके शासनकाल में राजनितिक और सांस्कृतिक दोनों की ही प्रगति हुई| इनके दरवार में 500 कवि रहतें थे|
राजभोज ने अनेकों पुस्तकों की रचना किए जैसे की आयुर्वेद सर्वश्व जोकि चिकित्सा शास्त्र है और समरांगनसुत्रधार यह स्थापत्यकला पर आधारित है| इसके अलावे राजभोज के अन्य पुस्तकों में विद्या विनोद, कंठाभरण सरस्वती, सिद्धांत संग्रह, योगसूत्र वृद्धि, राज्मातैंड, युक्ति कल्पतरु, चरुचर्चा और आदित्य प्रताप सिंह सिद्धांत आदि प्रमुख है|
यशोवार्मा
अंतिम परमार वंशी शासक यशोवार्मा एक कमजोर शासक था अतः इसके मृत्यु के बाद परमार वश कमजोर हो गया जिसका लाभ उठाकर अलाउद्धीन खिलजी ने 1305 ई० में मालवा को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया|