मुहम्मद बिन कासिम
भारत में प्रथम आक्रमण मालावार तट (केरल) में व्यापरियों के रूप में हुआ था ना की सिन्ध पर अतः भारत में इस्लाम का आगमन केरल से हुआ| सिन्ध पर आक्रमण के जानकारी का मुख्य स्रोत्र चचनामा है जोकि मुहम्मद बिन कासिम के एक अज्ञात सैनिक के द्वारा अरबी भाषा में लिखी गई थी| बिलादुरी की पुस्तक किताब-फुतुल-अल-बलदान तथा अकबर के दरवारी मीर मोहम्मद मासूम की पुस्तक तारीख-ए-सिन्ध से भी अरब आक्रमण के बारे में जानकारी मिलती है|
अरबों के बारे में
अरब के खलीफा का पद एक धार्मिक पद था अतः पैगम्बर मुहम्मद व उसके बाद भी जब तक खलीफा का पद धार्मिक पद बना रहा| सभी मुस्लिम शासक खलीफा से पूछकर ही कोई महत्वपूर्ण काम करते थे| इन शासकों का एक ही मूल उदेश्य होता था, इस्लाम धर्मं का परचार प्रसार करना|
लेकिन खलीफा का पद जब धार्मिक से हटकर धार्मिक व राजनितिक हो गया तो शासक अधिक से अधिक धन इकट्टा करने के लिए दुसरे के क्षेत्रों पर आक्रमण कर लुट-पाट करने लगे और लोगों को बलपूर्वक इस्लाम धर्म को मनवाया गया|
यही लुट-पाट के उदेश्य में 636 ई० में हजरत उमर ने भारत पर आक्रमण कर वहाँ के स्थानीय निवासी को लूटकर भाग गए| आगे भी लुट-पाट का सिलसिला जारी रहा किन्तु केवल स्थानीय नागरिको को ही लुट पाते थे| और जैसे ही राजा को इस बात की जानकारी मिलती थी राजा के सैनिक उसे खदेड़ देता|
सिन्ध पर आक्रमण के कारण
श्रीलंका के राजा ने खलीफा और अल हज्जाज दोनों को बहुमूल्य उपहारों से भरा 8 जहाज भेजा था जिसे अरब सागर में समुद्री लुटेरों द्वारा लुट लिया गया| जिस क्षेत्र में जहाजों को लुटा गया वह राजा दाहिर के क्षेत्र का हिस्सा हुआ करता था|
लुट के बाद अल हज्जाज ने इस जहाज के बारे में पता लगाने के लिए सिंध शासक दाहिर से आग्रह किया किन्तु दाहिर ने सहयता से इनकार कर दिया| इसी के बदले के लिए राजा दाहिर पर लगातार दो बार हमला किया लेकिन दाहिर ने दोनों बार पराजित कर छोड़ दिया| बार-बार हारने के बाद अरब के खलीफा ने भारत पर आक्रमण करने के उदेश्य से समस्त मुस्लिम को इकठ्ठा कर मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में एक सेना (जिहादी) का गठन किया| यह सैनिक किसी राजा या साम्राज्य का नहीं वल्कि जिहादी (धार्मिक कट्टरता) था|
अल हज्जाज अरब के खलीफा से मान्यता प्राप्त सुल्तान था, अल हजाज्ज जोकि मुहम्मद बिन कासिम का चाचा और ससुर भी था इसी ने भारत कासिम को भारत पर आक्रमण करने के लिए भेजा था| इसके अलावे सिन्ध का व्यापारिक महत्ता भी आक्रमण का प्रमुख कारण था|
सिन्ध के बारे में
जिस समय सिंध पर आक्रमण हुआ उस समय सिन्ध पर राजा दाहिर का शासन था और राजधानी अलोर (वर्तमान में रोहेरा) थी| दाहिर के पिता चच एक ब्राह्मण थें और इन्होने रायवंशी शासक राय साहसी द्वितीय जोकी छुद्र था की हत्या कर गद्दी हासिल थी| कासिम के पहले, अल हज्जाज ने भी 711 ई० में उबैदुला और वर्दुल के नेतृत्त्व में सिन्ध पर आक्रमण के लिए सेना भेजी थी जिसे दाहिर ने पराजित कर दिया था|
देवल
मुहम्मद बिन कासिम में 712 ई० में पहला सफल आक्रमण किया मुहम्मद बिन कासिम ने पहले सिंध के देवल पर आक्रमण किया किन्तु दाहिर ने अपने पक्षमी सीमा को पूरी तरह से छोड़कर पूर्वी सीमा की ओर चला गया हालाँकि दाहिर के भतीजे ने कुछ राजपूतों के साथ मिलकर किले की रक्षा करने का प्रयास किया लेकिन असफल रहा अतः मुहम्मद बिन कासिम यह किला आसानी से जीत लिया|
नेऊन
मुहम्मद बिन कासिम ने अगला आक्रमण नेऊन पर किया लेकिन दाहिर ने इस क्षेत्र को पुरोहितो को छोड़ हवाले कर दिया जहाँ अधिकतर आवादी बौद्धों की थी और अपने बेटे जयसिंह को भी ब्राहमणाबाद बुला लिया अतः यह किला बिना युद्ध के ही जीत लिया| इसी प्रकार से सेहवान और सीसम के किले को भी बिना युद्ध के जीत लिया|
राजौर
यहाँ पर मुहम्मद बिन कासिम और दाहिर के बीच युद्ध हुआ किन्तु मुहम्मद बिन कासिम के लिए यह युद्ध जीतना बड़ा मुश्किल था इसलिए खुद व अपने सैनिकों को केवल राजा दाहिर के ऊपर केन्द्रित करने को कहा क्योंकी राजा की मृत्यु मतलब विजय अतः इसी युद्ध में दाहिर की मृत्यु हो गया|
हार के बाद दाहिर के पुत्र जयसिंह ने सभी को इस किले को छोड़कर ब्राहमणाबाद चला गया अब क्योंकी मुहम्मद बिन कासिम की सेना जिहादी विचारधार से प्रेरित था इसलिए राजौर के दुर्ग में राजा दाहिर की पत्नी ने स्वयं अग्निकुण्ड में कूद गई| भारतीय इतिहास में जौहर व्रत प्रथा सबसे पहले राजा दाहिर की पत्नी ने किया था|
ब्राहमणाबाद (विश्वासघात)
ब्राहमणाबाद में कासिम और जयसिंह के बीच युद्ध हुआ किन्तु जयसिंह के कुछ लोगों ने कासिम से हाथ मिला लिया था इसलिए विश्वासघात के कारण जयसिंह पराजित हो गया पराजय के बाद जयसिंह को बलपूर्वक इस्लाम में बदला दिया गया| कासिम जिस क्षेत्र को भी जीता वहाँ के लोगों को बलपूर्वक इस्लाम में बदलता गया और जो बदलने से इनकार कर दिया उसे हत्या कर दिया गया या तो उस पर कई प्रकार का कर लागा दिया गया|
इसी समय ही राजपूत साम्राज्य का उदय हुआ जोकि मुहम्मद बिन कासिम आगे बढ़ने से पूरी तरह से रोक दिया और मुहम्मद बिन कासिम की इच्छाएँ अधुरा ही रह गया| कासिम की अंतिम विजय मुल्तान थी|
प्रभाव
भारतियों से उसने ज्योतिस, कल, चिकित्सा, गणित तथा रसाइन के बारे में सिखा और विभिन्य ग्रंथो को अरबी भाषा में अनुवाद करवाया|
नोट – जाटों एवं बौधों तथा मोका नामक देशद्रोही ने मोहम्मद बिन कासिम की सहायता की थी|