सल्तनत कालीन प्रशासनिक व्यवस्था दो भागों में विभाजित थी पहला केन्द्रीय जिसका प्रमुख सुल्ताना कहलाता था और दूसरा प्रांतीय, प्रान्त को इक्ता भी कहा जाता था जोकि की केंद्र के अधीन कार्य करता था|
सल्तनत कालीन प्रशासन
सल्तनत कालीन शासन व्यवस्था निम्न रूप में विभाजित था, केंद्र > प्रान्त > परागन > ग्राम अर्थात ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई होती थी| प्रशासिनिक व्यवस्था को चलाने के लिए सुल्तान की सहयता हेतु मंत्रिपरिषद थी जिसे मजलिस-ए-खलवत कहा जाता था|
- वजीर (प्रधानमंत्री) – इसे दीवान ए वजारत कहा जाता था जोकि राजस्व विभाग के प्रमुख हुआ करता था|
- आरिज ए मुवालिक (सैन्य विभाग) – इसे दीवाने ए अर्ज कहा जाता था|
- दीवान ए खास – पत्र व्यवहार से संवंधित
- दीवान ए रिसालत – विदेशी मामलों के संवंधित
- सद्र उल सदूर – धर्म विभाग
- काजी उल कुजात – न्याय विभाग
राजनितिक
सल्तनत कालीन शासक मुस्लिम थे और खलीफा सैधांतिक प्रधान होता था अतः खलीफा ने समय-समय पर दिल्ली सल्तनत शासकों को मदद किया| सल्तनत कालीन शासन की प्राकृत सैनिक राज्य थी किन्तु कुछ शासकों के द्वारा कल्याणकारी राज्य के स्वरुप को भी प्रदान किया|
केन्द्रीय प्रशासन
दिल्ली सल्तनत के प्रशासन का मुख्य केंद्र सुल्तान होता था और व्यावाहारिक रूप से सिविल, सैनिक एवं न्यायिक मामलों का प्रधान होता था पर सैधांतिक रूप सुल्तान खलीफा के अधीन होता था|
प्रांतीय प्रशासन
प्रांतीय प्रशासन के बारे में स्पस्ट जानकारी नहीं मिलती है किन्तु इब्बन्बतुत्ता के अनुसार मुहम्मद बिन तुगलक के काल में 23 प्रान्त हुआ करते थे| प्रान्तों को कई जिलों में बाट दिया गया था जिसे शिक कहा जाता था शिकों की स्थापना बलबन ने किया था और यहाँ के शासक को शिकदार कहा जाता था| जिलों या शिकों को परगनों में विभाजित किया गया था|
शासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी जो स्वशासन तथा पैतृक अधिकरियों की व्यवस्था के अन्तर्गत आता था| पटवारी, खुत, मुकद्दम एवं चौधरी जो शासन को लगान वसूलने में मदद करते थे| कुछ केन्द्रशासित प्रदेश होते थे जिसमे शिक व शहर शामिल होते थे यहाँ के अधकारियों को शहना (अधीक्षक) कहा जाता था| जोकि सुल्तान द्वारा नियुक्त होते थे और यहाँ से प्राप्त कर सीधे केंद्र के राजकोष में जाता था|
सैन्य प्रशासन
सल्तनत कालीन सैन्य प्रशासन मुख्यतः तुर्क व मंगोल पद्धति पर आधारित होती थी| सल्तनत काल में चार प्रकार के सैनिक होता था|
- सुल्तान द्वारा नियुक्त सैनिक
- इक्तादारों (प्रांतीय) द्वारा नियुक्त सैनिक जोकि युद्ध में सुल्तान को सहायता प्रदान करता था
- अस्थाई सैनिक – जिसे युद्ध के समय नियुत किया गया हो और बाद में हटा दिया गया हो
- धार्मिक युद्धों के लिए स्वंय सामिल हुआ हो (जिहादी)
सैनिक कई प्रकार के होते थे किसी को सुल्तान द्वारा सीधे नियुक्त किया जाता था तो किसी को इक्तादारों (प्रांतीय) द्वारा नियुक्त सैनिक जोकि युद्ध में सुल्तान को सहायता प्रदान करता था|
सैनिकों का गठन दशमलव प्रणाली के आधार पर किया गया था जैसे की 10 घुड़सवार पर 1 सरेखल, 10 सरेखल पर 1 सिपहसलार, 10 सिपहसलार पर 1 अमीर, 10 अमीर पर 1 मलिक, 10 मालिक पर 1 खान|
कर प्रणाली
- उस्र – मुस्लिमों पर लागाये जानेवाला कृषि कर
- खारज – गैर मुस्लिमों पर लगाये जानेवाला कृषि कर (यह मुस्लिमों पर लगाए जानेवाल कर से अधित होता था 1/2 से 1/3)
- जकात – मुस्लिमों पर लागाये जानेवाला धार्मिक कर
- जजिया – गैर मुस्लिमों पर लगाये जानेवाला धार्मिक कर
- खम्स – लुट-पाट कर लागे गए धन पर लगाए जानेवाला कर
- नोट – इसके अलावे व्यापार, चारागाह व सिंचाई यादी पर भी कर लगाया जाता था|
न्यायिक
न्यायिक व्यस्था थी जिसे चालने के लिए सद्र एवं काजी की मदद लिया जाता था और हर सप्ताह करीब 2 बार दरवार लगाया जाता था हालाँकि सुल्तान का निर्णय ही अंतिम निर्णय होता था| जो तुर्क होते थे उनका महत्त्व सर्वाधिक होता था और जो धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बने थे उनका महत्त्व बहुत ही कम होता था| इसके अलावे सिया, सुन्नी और धार्मिक व जाती भेदभाव अपने चरम पर था|