Ved : वेद साहित्यिक स्रोत्र के रूप में, वैदिक कालीन आर्यों के सामाजिक, धार्मिक एवं राजनितिक जीवन की जानकारी का प्रमुख स्रोत्र है| इनमे से भी ऋग्वेद में धर्म और विचारों का वर्णन विशेष रूप से किया गया है|
वेद | Ved
वेद चार हैं ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद इन सभी वेदों से हमें वैदिक काल तथा वैदिक संस्कीकृति के बारे में जानकारी मिलती हैं| इन सभी वेदों में ऋग्वेद सबसे महत्वपूर्ण है| इस खण्ड में सभी चारों वेदों के बारे सटीक जानकारी देने का प्रयास किया गया है|
ऋग्वेद (First Ved)
ऋग्वेद विश्व का प्रथम प्रमाणिक ग्रन्थ है, संस्कृत भाषा में लिखित यह वेद (ved) देवताओं के स्तुति से संबंधित रचनाओं का सग्रह है| इसके पठानकर्ता को होतृ कहा जाता है| ऋग्वेद 10 मण्डलों (अध्यायों), 1028 सूक्त (मंत्र) और 10462 ऋचाएं हैं|
भारत का सबसे प्राचीन धर्म ग्रंथ है, ऋग्वेद के संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास हैं संकलनकर्ता इसलिए क्योंकी ऋग्वेद की रचना कई महान ऋषि मुनियों के द्वारा किया और महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास द्वारा इन सभी अंशो को एक साथ संकलन किया गया, इसलिए महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास को वेदों का संकलनकर्ता कहा गया|
ऋग्वेद में 250 ऋचाएं इंद्र के लिए एवं 200 ऋचाएं अग्नि देवता को समर्पित है जो यह दर्शाता है की वैदिक काल में इंद्र सबसे महत्वपूर्ण देवता तथा अग्नि दुसरे सबसे महत्वपूर्ण देवता थे|
प्रसिद्ध वाक्य “असतो मा सद्ग्मय” तथा ‘अधन्य’ शब्द जोकि गायों से संबंधित है, ऋग्वेद से लिया गया है| ऋग्वेद में लिखी गई बातें ईरानी भाषा के प्राचीनतम ग्रन्थ अवेस्ता में भी मिलती है|
ऋग्वेद के प्रमुख मण्डल
तीसरा मण्डल – ऋग्वेद का तीसरा मण्डल विश्वामित्र द्वारा लिखा गया है, इसी मण्डल में सूर्य देवता को समर्तिप प्रसिद्ध गायत्री मन्त्र का जिक्र है|
सातवाँ मण्डल – सातवाँ मण्डल में दशाराग युद्ध का वर्णन किया गया है जोकि पुरुशनी नदी आधुनिक रावी नदी के तट पर लड़ा गया था| इस युद्ध में एक तरफ अकेले सुदास नामक राजा तथा दुसरे तरफ दस अन्य राजाओं का संघ था, फिर भी सुदास की विजय हुई|
आठवाँ मण्डल – आठवीं मण्डल के हस्तलिखित ऋचाओं को ‘खिल’ कहा गया है|
नौवाँ मण्डल – नौवाँ मण्डल में ‘सोम देवता’ का उल्लेख किया गया है|
दशवाँ मण्डल –
दशवें मण्डल में ‘चतुष्वर्ण समाज’ का वर्णन किया गया है इसमें बताया गया है की समाज चार वर्गों में विभाजित था, ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शुद्र| इनके उत्पत्ति के बारे कहा गया की ब्राहमण, ब्रह्मण मुख से, क्षत्रिय भुजाओं से, वैश्य जंघा से तथा शुद्र की उत्पत्ति पैरों से हुई है| परंतु वर्ण व्यवस्था जन्म पर नहीं वल्कि कर्म पर आधारित था अर्थात जो जैसा कर्म करेगा उसे वैसा ही वर्ण मिलेगा|
वर्ण व्यवस्था का विशेष वर्णन धर्मसूत्र में किया गया है धर्मसूत्र में कहा गया है की जो व्यक्ति शिक्षा के कार्य से जुड़ा होगा वह ब्राहमण कहलाएगा, जो वलवान होगा वह क्षत्रिय कहलाएगा, जो व्यापार से जुड़ा हुआ होगा उसे वैश्य कहा जाएगा और जो सेवा क्षेत्र से जुड़ा होगा वह शुद्र कहलाएगा| इन सभी वर्णों में किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं किया जाता था|
ऋग्वेद के 2 से 7 तक के मण्डल को प्राचीनतम मण्डल माना जाता है, तथा प्रथम एवं दशम मण्डल को बाद में जोड़ा गया|
नोट – वैदिक साहित्य के रूप में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राहमण का स्थान है, ऋग्वेद से जो भी जानकारियां प्राप्त होती है उस ऋग्वेदिक काल के अंतर्गत रखा जाता है|
यजुर्वेद
अजुर्वेद की रचना गद्य एवं पद्य दोनों तरह से किया गया है इस कारण इसे गद्य एवं पद्य का वेद कहा जाता है| इसमें मुख्य रूप से यज्ञ विधियों का वर्णन किया गया है जैसे अनुष्ठानों के समय किस प्रकार के व्यास्था को अपनाया जाया एवं किस तरह नियमों का पालन किया जाय इन सभी का संकलन यजुर्वेद में किया गया है| इसके पाठकर्ता को आधर्व्यु कहा जाता है| वैदिक काल एक परिचय
यजुर्वेद में पहलीबार दो राजकीय समारोहों राजसूर्य एवं वाजपेय यज्ञ का उल्लेख किया गया है| इसके दो मुख भाग है पहला कृष्ण यजुर्वेद एवं दूसरा शुक्ल यजुर्वेद| शुक्ल यजुर्वेद को वाजसनेयी संहिता भी कहा जाता है|
सामवेद
साम का शाब्दिक अर्थ होता है गान, सामवेद ऋग्वेद पर ही आधारित है क्योंकी सामवेद में ऋग्वेद के उन सभी ऋचाओं को लिखा गया है जिसे की संगीतमय रूप में गया जा सकता हो अर्थात गाये जा सकने वाली ऋचाओं (मन्त्रों) के संकलन को ही सामवेद कहा गया| अब क्योंकी भारतीय इतिहास में सामवेद में पहलीबार संगीत का उल्लेख किया गया है, इस कारण इसे ‘भारतीय संगीत का जनक’ कहा गया| इसके पाठकर्ता को उद्रात्त कहा जाता है|
सामवेद मे कुल 1,824 मंत्र है, जिसमे से 75 को छोड़कर शेष सभी मंत्रो को ऋग्वेद से लिया गया है|
अथर्ववेद
इस वेद की रचना अथर्वा ऋषि के द्वारा किया गया इसलिए इसे अथर्ववेद कहा गया| यह सबसे अंतिम यानी बाद का रचित वेद (ved) है|
अथर्वेद में रोग निवारण, तंत्र-मन्त्र, जादू-टोना, वशीकरण, शादी-विवाह, मृत्यु, वली आदि के अलावे इनमे सामान्य मनुष्यों के विचार, विश्वास और अंधविश्वास के बारे में भी जानकारी मिलती है| पर इसी वेद को ही ब्रह्मम वेद मतलब की श्रेष्ठ वेद (ved) काहा गया है| इसके पाठकर्ता को ब्रह्मा कहा गया है|
अथर्वेद में 20 मण्डल, 731 सूक्त तथा 5839 मन्त्र है| अथर्वेद को ब्रह्मवेद, भैषज्यवेद तथा महीवेद के नाम से भी जाना जाता है| इस वेद में सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है एवं स्त्रियों के जन्म को निन्दा किया गया है|
वेद (ved) | पाठकर्ता |
---|---|
ऋग्वेद | होतृ/होता |
सामवेद | उद्द्गाता/ उद्द्गातृ |
अर्जुवेद | अध्वर्यु |
अर्थवेद | ब्रह्मा |