चंदेल वंश का इतिहास | Chandel vansh History

चंदेल वंश (Chandel vansh)

गढ़वाल वंश के पतन के बाद नन्नुक द्वारा बुन्देल खण्ड में चंदेल वंश (Chandel vansh) की स्थापना की और खजुराहों को अपनी राजधानी बना शासन किया हालाँकि यह गुर्जर प्रतिहारों के अधीन सामन्त रहें| लेखों में चंदेलों को चंद्रोदय या चन्द्रत्रेय कहा गया है इसे ऋषि का वंशज बताया गया है| नन्नुक इस वंश का प्रथम शासक था इसी का पौत्र जयसिंह जिसे जेजा कहकर बुलाया जाता था बाद में जेजा से जेजाभुक्ति नाम पड़ गया|

हर्ष (900 से 925 ई०)

इसने गुर्जर प्रतिहारों से अपने वंश को स्वतंत्र करवाया, इस उपलक्ष्य में इन्होने परमभट्टाकर की उपाधि धारण किया| इससे पहले के चंदेल वंशी शासक ने राजवंश की स्थापना तो किए थे लेकिन वह गुर्जर प्रतिहारों के अधीन सामन्त रहें|

यशोवर्मन या लक्ष्वन वर्मन (930 से 950 ई०)

इसने मालवा, चेदी, मद्य और कोशल को जीतकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया| यशोवर्मन में खजुराहों में विष्णु मंदिर का निर्माल करवाया और उस मंदिर में ऐकुंथ की मूर्ति स्थापित करवाया|

धंग (950 से 1108 ई०)

धंग ने अपनी राजधानी को कालिंजर से खजुराहों स्थान्तरित कर लिया| चंदेलों का वास्तविक स्वतंत्रता का जन्मदाता धंग ने महराजाधिराज की उपाधि धारण की इसने कन्नौज और ग्वालियर दोनों के ऊपर विजय प्राप्त किया|

भात्तिन्डा के शाही वंश के शासक जयपाल एक कमजोर शासक था इसलिए धंग ने सुबुत्गिन के विरुद्ध जयपाल को सैनिक सहायता प्रदान किया जिस वजह से जयपाल यह युद्ध जीत गया| हार के बाद सुबुत्गिन ने जयपाल के साथ संधि किया जिसमे कहा गया की हम दुवारा भारत नहीं आयेंगे| अतः सुबुत्गिन अपने सैनिको के साथ वापस लौट गया|

सुबुत्गिन का भतीजा महमूद गजनवी को जब इस बात का पता चला तो उसने इस अपमान का बदला लेने के लिए जयपाल पर आक्रमण कर दिया| इस युद्ध में जयपाल की हार हो गयी| जयपाल इस हार को सहन नहीं कर पाया और सत्ता अपने पुत्र आनंदपाल को सौंपकर खुद नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली| ऐसा मान्यता है की धंग ने 100 वर्षो तक जीवित रहा और प्रयाग में आकर गंगा एवं युमना नदी के संगम पर अपना जीवन त्याग दिया|

धंग ने खजुराहों में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया जिसमे जिन्नाथ मंदिर, विश्वनाथ का मंदिर, बैधनाथ का मंदिर एवं कंदरिया महादेव का मंदिर महत्वपूर्ण है| शुंग वंश के उदय का कारण

गंड

धंग का पुत्र गंड ने 1008 ई० में महमूद गजनवी का सामना करने के लिए आनंदपाल के द्वरा बनाए गए संघ में सामिल हो गया| आनंदपाल जोकि अपने पिता जयपाल का बदला लेने के उद्देश्य से स्थापित यह पांच छोटे-छोटे राज्यों का संघ था| संघ 1008 ई० में महमूद गजनवी पर आक्रमण किया किन्तु हार संघ हार गया| इसके साथ ही संघ भी ख़त्म हो गया|

विद्याधर (1019 से 1029 ई०)

भारत की एकता और अखंडता पर विश्वाश रखने वाले विद्याधर के शासनकाल के दौरान 1019 ई० गजनवी गुर्जर प्रतिहार वंशी शासक राजपाल बिना युद्ध किये भाग गया तो विद्याधर ने अपने मित्रों का एक संघ बनाकर राजपाल को ढूंडवा कर उसका हत्या करवा दिया| राजपाल के भागने से गजनवी की प्रतिष्ठा और बढ़ गया लेकिन राजपाल की हत्या करवा देने के बाद गजनवी की प्रतिष्ठा पर इसका काफी नाकारात्मक प्रभाव पड़ा| महमूद गजनवी जिसने अपने जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारा था, गुस्से में 1019 ई० में विद्याधर के ऊपर आक्रमण कर दिया परिणाम स्वरूप गजनवी बुरी तरह से पिट गया हालाँकि यह युद्ध अनिर्णायक रहा था|

गजनवी इस अपमान का बदला लेने के लिए 1022 ई० में गजनवी ने तैयारी के साथ पुनः विद्याधर पर आक्रमण किया किन्तु विद्याधर भी अंपने समय का एक शक्तिशाली शासक था| जिसे हराना गजनवी के लिए संभव नहीं था अतः विद्याधर को संधि प्रस्ताव भेजा संधि के तहत गजनवी को अपने जीते हुए कीलें में से 15 किलों को विद्याधर को देना पड़ा|

परमार्दी देव (1165 से 1203 ई०)

अंतिम चंदेल वंशी शासक परमार्दी देव का युद्ध, चौहान शासक पृथ्वीराज चौहान तृतीय से हुआ इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान तृतीय जीत गया और महोवा पर अधिकार कर लिया और महोवा का नाम बदलकर महोत्सव नगर रख दिया गया| इस युद्ध में आल्हा-उदल परमार्दी देव का सेनापति था|

1203 ई० में कुतुबुद्धीन ऐवक ने इसे परास्त किया और कालिंजर पर अधिकार कर लिया बाद में 1205 में चंदेल राज्य को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया| इसके साथ ही Chandel vansh का पतन हो गया|

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