हड़प्पा सभ्यता की संस्कृति | Harappa Sanskriti

Harappa Sanskriti : उत्खनन से अधिक संख्या में स्त्री की मूर्तियाँ मिलने से यह अनुमान लगाया जाता है की सिन्धु सभ्यता मातृसत्तात्मक (जहाँ स्त्री प्रधान हो) रही होगी| इसके अलावे एक स्त्री के गर्भ से निकलते हुए एक पौधे को दिखाया गया है जिससे यह माना जाता है की यह पृथ्वी देवी की प्रतिमा है और लोग इसे उर्वरक की देवी मानकर पूजा करते थे| जिस प्रकार मिस्र के लोग नील नदी को देवी मानकर पूजा करते थे संभवतः मूर्ति-पूजा का आरम्भ सिन्धु सभ्यता से ही शुरू हुआ|

हड़प्पा संस्कृति | Harappa Sanskriti

मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर योग मुद्रा में एक व्यक्ति बैठे हैं जिसके सिर पर तीन सींग है, इस मुहर पर 5 प्रकार के कुल 6 पशु है| इसके बाएँ ओर गैंडा एवं भैसा तथा दाएँ ओर हाथी एवं बाघ है तथा सामने आसन के नीचे दो हिरन बैठें है इन्हें ही पशुपति शिव का रूप माना गया है| कुछ विद्वानों का मानना है कि भगवन शिव द्रिविड़ो के देवता थे अतः हिन्दू धर्म द्रविड़ो का मूल धर्म था, जिसे बाद में जब आर्य भारत आये तो उन्होंने इसे अपना लिया|

पूजा व उपशाना

धार्मिक अनुष्ठान के लिए धार्मिक गृह बनाई गई थी, इतिहासकारों की माने तो वृहतस्नानागार में धार्मिक कार्य किया जाता होगा, जिस प्रकार आज के समय में गंगा में स्नान व उपासना करते है|

सैन्धव वासी मानव, पशु व वृक्षों सभी रूपों में ईश्वर की उपशाना करते थे मातृ देवी और देवताओं की उपासना व उन्हें बलि दी जाने की धार्मिक परम्परा रही होगी| पशु, पक्षी व वृक्ष की पूजा खासकर एक सींग वाले जानवर और बतख (फाख्ता) की पूजा प्रचलित था| पशुओं में कूबड़ वाला सांड, पक्षियों में बतख तथा वृक्षों में पीपल का वृक्ष सबसे अधिक पूजनीय था| इन्हें भी – हड़प्पा सभ्यता का विस्तार

पशुपतिनाथ शिव की उपशाना, नाग पूजा, वृक्ष पूजा, अग्नि पूजा, जल पूजा का प्रचालन था स्वास्तिक चिन्ह एवं चक्र, सूर्य पूजा का प्रतीक था| स्वास्तिक चिन्ह हड़प्पा सभ्यता की देन है, इससे सूर्य उपासना का अनुमान लगाया जाता है| लोथल व कालीबंगा में की गई खुदाई से अग्निकुण्ड और अग्निवेदिकाएं मिला है|

अन्य तथ्य

अधिक संख्या में ताबीजों की प्राप्ति के कारण उनके अंध विश्वास का पता चलता है लोग भूत प्रेत, पुनजन्म, भक्ति व परलोक जैसी अवधारणा पर विश्वास करते थे|

मिस्र और मेसोपोटामिया में कई मदिरों के अवशेष मिले है किन्तु हड़प्पा सभ्यता के किसी भी स्थल से मंदिर के अवशेष नहीं मिले है, हालाँकि बनावली के एक भवन में मंदिर होने का अनुमान लगया जाता है|

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