Harappan Town Planning : सिन्धु सभ्यता अत्यंत ही विकसित एवं विस्तृत सभ्यता थी, पुरात्विक स्रोत्रों के आधार परहड़प्पा सभ्यता का नगरीय सभ्यता होने का प्रमाण मिला है| नगर निर्माण योजना एवं जल निकास प्रणाली इस सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता थी, नगरों के विकास के लिए ग्रिड पद्धति अपनाई गई|
सामान्य तौर पर पहले ग्रामीण सभ्यता का विकास होता है उसके बाद नगरीय सभ्यता का किन्तु भारत में सबसे पहले नगरीय सभ्यता आई उसके बाद ग्रामीण सभ्यता आई क्योंकी वैदिक सभ्यता जोकि एक ग्रामीण सभ्यता थी वह सिन्धु सभ्यता के बाद आई|
नोट – ताम्र पाषण काल में भारत में ग्रामीण सभ्यता की स्थापना हुआ था किन्तु वहाँ भी दो दैमाबाद तथा इनामगांव में नगरीकरण की प्रक्रिया देखने को मिलता है|
नगर निर्माण योजना – Harappan Town Planning
हड़प्पा के नगर नियोजन (harappan town planning) के लिए प्रत्येक नगर दो भागो में विभक्त किया गया था|
- पक्षमी टीलें
- पूर्वी टीलें
पक्षमी टीलें – यह आकार में छोटा होता था पर ऊँचाई पर स्थिति होता था| इस पर बने दुर्ग को नगर दुर्ग कहा जाता था जोकि सामान्तः आयताकार आकार के होते थें और यहाँ प्रशासक वर्ग के लोग रहते थे|
पूर्वी टीलें – यह निचला नगर था जहाँ से आवास के साक्ष्य मिले है यह नगर दुर्ग के अपेक्षाकृत बड़े होते थे| यहाँ सामान्य लोग जैसे व्यापारी, शिल्पकार, कारीगर एवं मजदुर वर्ग के लोग रहते थे|
हड़प्पा कालीन नगरों के चरों ओर रक्षा प्राचीर (बाउंड्री) के भी प्रमाण मिलें है. बनाने का उदेश्य आक्रमण, लुटेरो तथा पशु चोरों से सुरक्षित रखना था| केवल लोथल एवं सुरकोटदा के दुर्ग और नगर (पक्षमी टीलें और पूर्वी टीलें) दोनों एक ही रक्षा प्राचीर (बाउंड्री) से घिरा होता था|
सड़क
नगर निर्माण के लिए ग्रिड पद्धति (जाल पद्धति) अपनाई गयी थी और यह पद्धति सभी वस्तियों पर लागू होती थी अर्थात वस्ति बड़ी हो या छोटी, मुख्य सड़के उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पक्षिम तक जाती थी और एक दुसरे को समकोण (90 डिग्री) पर काटती थी|
सड़के और गलियों के बनाबट को देखकर यह अनुमान लगाया जाता है, कि किसी खास योजना के तहत पहले सड़के और नालियाँ बनाया होगा| उसके बाद घरों का निर्माण किया गया होगा| तभी तो सड़के बिल्कुत सीधी होती थी और एक दुसरे को समकोण पर काटती होगी| सड़के कच्ची मिट्टी की बनी होती थी हालाँकि पक्की इंटों के सड़के भी बनी होती थी| मोहनजोदाड़ो की सबसे चौड़ी सड़क लगभग 10 मीटर से कुछ अधिक चौड़ी थी|
नालियाँ
लगभग सभी छोटे व बड़े घरों में प्रांगन और स्नानागार होता था जिसे गली व सड़क के किनारे बनाया जाता था ताकि आसानी से पानी का निकास हो सके| घरों से पानी के निकास के लिए नालियाँ भी व्यावस्थित ढंग से बनाया गया था नालियों खुली नहीं होती थी वल्कि नालियाँ ईंटो या पत्रों (प्लेट) से ढकी होती थी, जैसे की आज के समय में देखने को मिलता है| इसे मिट्टी, जिप्सम और बजरी आदि के मिश्रण से जुडाई किया जाता था (नालियों को पत्थर के प्लेट से ढककर उसे जोड़ दिया जाता था)
भवन
हड़प्पा कालीन नगरों के भवन साधाराणतः छोटे-छोटे होते थे जिसमे चार से पांच कमरे होते थे हालाँकि कुछ विशालकाय दो मंजिले भवनों का भी निर्माण किया गया था| घरों के दरवाजे एवं खिड़कियाँ मुख सड़क की ओर ना खुलकर पीछे गलियों में खुलते थे किन्तु अपवाद स्वरूप लोथल में दरवाजे एवं खिड़कियाँ मुख सड़क की ओर खुली होती थी| नगरों में कुछ सर्वाजनिक भवन भी होते थे जैसे कि स्नानागार, अन्नागार आदि| प्रत्येक घरों में रसोईघर एवं स्नानागार होता था|
इंटें
नगर निर्माण योजना में ईंटो का प्रयोग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाया, क्योंकी सिन्धु सभ्यता के भवनों के अलावे सामान्य घरों में भी पक्की ईंटो का प्रयोग किया गया था| इसके अलावे घरों में स्थित प्रांगन, स्नानागार एवं कुँए तथा नालियाँ भी पक्की ईंटो का बना होता था| हालाँकि कालीबंगा एवं रंगपुर में कच्ची इंटों का भी प्रयोग किया गया| गाँवों की रक्षा के लिए पक्की ईंटो के दीवार लगाया गया था, जिससे अनुमान लगाया जाता है की यहाँ प्रति वर्ष बाढ़ आती होगी| सभी ईंटो का अनुपात 4:2:1 था| इनके अलावे अन्य अकार के इंटों का भी प्रयोग किया जाता था लेकिन 4:2:1 अनुपात बाली आयताकार इंटे सर्वाधिक प्रचलित थी|
मेसोपोटामियां की सभ्यता के भवनों में भी पाक्की ईंटो का तो प्रयोग किया गया है किन्तु इतनी अधिक संख्या में नहीं किया गया है, जितना की सिन्धु सभ्यता के भवनों में किया गया था| सिन्धु सभ्यता की समकालीन सभ्यता, मिस्र की सभ्यता के भवनों में धुप में पकी ईंटो का प्रयोग किया गया था| सिन्धु घाटी सभ्यता की मजबूत आर्थिक स्थिति का कारण
सिन्धु सभ्यता से बड़े-बड़े नगर मिले है जिसमे स्नानागार, अन्नगार, सभा भवन, पुरोहित आवास, आदि प्रमुख है| अन्नगार सिन्धु सभ्यता की सबसे बड़े ईमारत थी जबकि विशाल स्नानागार, मोहनजोदड़ों का सबसे महत्वपूर्ण व सर्वाजनिक स्थल था| केवल कालीबंगा से एक फर्श में अलंकृत इंटों का प्रयोग किए जाने का साक्ष्य मिला है| कुछ दीवारों पर प्लास्टर के भी साक्ष्य मिले है|
स्नानागार की विशेषता
मोहनजोदड़ो से एक विशाल सर्वाजनिक स्नानागार मिला है जिसकी लम्बाई 39 फिट (11.8 मीटर), चौड़ाई 23 फिट (7.01 मीटर), गहराई 23 फिट (2.43 मीटर) थी, और इसके तल तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी होती थी|
स्नानागार के चारो तरफ पक्की ईटों का प्रयोग किया गया था, स्नानागार के ही बगल में वस्त्र बदलने के लिए कमरे बना होता था| स्नानागार के किनारे में बड़ा सा हौज बना होता था, स्नानागार के पानी जब गन्दा हो जाता होगा तो इसी हौज के जरीय पानी भरकर बहार निकाला जाता होगा| ऐसा माना जाता है की इस स्नानागार का प्रयोग धार्मिक अनुष्ठानो के लिए किया जाता होगा|