Haryak Vansh : मगध के सबसे प्राचीन वंश के शासक बृहद्रथ और इसकी राजधानी गिरिव्रज थी| बौद्ध धर्म ग्रन्थ के अनुसार मगध पर हर्यक वंश की स्थापना 544 ईसा पूर्व में बिम्बिसार ने किया था| इसके शासनकाल से ही मगध के साम्राज्य का तेजी से विस्तार हुआ|
हर्यक वंश – Haryak Vansh
बिम्बिसार दूरदर्शी व योग्य शासक था इसे श्रेनिका के नाम से भी जाना जाता है इन्होने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए वैवाहिक संवंध को अपना प्रमुख हथियार बनाया| और प्रमुख राजवंशो के राजकुमारियों के साथ वैवाहिक संवंध बनाया और अपने साम्राज्य का विस्तार किया| जैसे की वैशाली के लिच्छवी वंश के राजा चेटक की पुत्री चेलना से विवाह किया, कोशल नरेश की बहन महाकोशाला से तथा मद्र (पंजाब) की राजकुमारी क्षेमा से विवाह किया| महावग्ग के अनुसार बिम्बिसार की 500 से अधिक रानियाँ थी|
जिन शक्तिशाली व प्रमुख राजवंशों के साथ वैवाहिक संवंध स्थापित नहीं हो सका उसके साथ दोस्ताना संवंध बना लिया ताकि शत्रुता भी कम हो और साम्राज्य का विस्तार भी होता रहे| जैसे की अवंती के राजा चंद्र प्रधोत, गंधार के राजा मुकु रगति और सिंध के राजा रुद्र्दायन| अंग को जीतकर बिम्बिसार ने मगध साम्रज्य में मिला लिया और वहाँ अपने पुत्र अजातशत्रु को अंग का उपराजा नियुक्त कर दिया|
आम्रपाली
यह वैशाली की नर्तकी और गायिका थी जिसके सौन्दर्य से प्रभावित होकर लिच्छवी से जीतकर गिरिव्रज ले आया और उससे विवाह किया| जीवक आम्रपाली का पुत्र था जिसकी शिक्षा के लिए बिम्बिसार ने तक्षशिला भेजा था, जहाँ से वह प्रसिद्ध चिकित्सक व राजवैध बना| जिसे आगे चलकर बिम्बिसार ने महात्मा बुद्ध की सेवा में भेजा था|
धार्मिक जीवन
गौतम बुद्ध का मित्र और संरक्षक बिम्बिसार प्रारम्भ में जैन धर्म का अनुयायी था किन्तु महात्मा बुद्ध से मिलने के बाद बिम्बिसार ने बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया| जिसकी जनकारी बौद्ध ग्रन्थ विनयपिटक में मिलती है| जब महात्मा बुद्ध रोग ग्रसित थे तो बिम्बिसार ने अपने राजवैध जीवक को उनकी सेवा में भेजा था और जब अवन्ती के राजा प्रधोत पांडू रोग से ग्रसित थे उस समय भी बिम्बिसार ने राजवैध जीवक भेजा था! इसे भी – मगध का उत्कर्ष
बौद्ध व जैन ग्रंथों के अनुसार बिम्बिसार में मगध पर 52 वर्षों तक शासन किया, फिर उसके पुत्र अजातशत्रु में उसे बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया जहाँ 492 ई० पूर्व में बिम्बिसार की मृत्यु हो गया| हर्यक वंश (haryak vansh) का अगला शासक अजातशत्रु बना किन्तु बिम्बिसार ने अपने पुत्र दर्शक को अपना उतराधिकारी घोषित किया था
अजातशत्रु
बिम्बिसार ने अपना उतराधिकारी अपने पुत्र दर्शक को घोषित किया था किन्तु आजातशत्रु ने 491 ई० पूर्व में अपने बिम्बिसार की हत्याकर मगध की राजगद्दी पर बैठा| अजातशत्रु का बचपन का नाम कुनिक था, यह जैन धर्म का अनुयाई था कहा जाता ही की अजातशत्रु ने बौद्ध विरोधी देवव्रत के वहकावे में अपने पिता की हत्या किया था|
अजातशत्रु अपने पिता के साम्राज्य विस्तार नीति को जरी रखता है, इसके शासनकाल में मगध का विस्तार चरमोत्कर्ष पर था| हालाँकि यह इतना आसान नहीं था क्योंकी
अजातशत्रु ने जो यातनाएं अपने पिता को दिया था उससे दुखित होकर कोशल के राजकुमारी व बिम्बिसार की पत्नी महाकोशाला की मृत्यु हो गई थी| इसलिए कोशल के शासक प्रसेनजित ने क्रोधित होकर मगध पर आक्रमण कर दिया| इस युद्ध में प्रसेनजित पराजित होकर श्रावस्ती भाग गए लेकिंग पुनः मगध पर आक्रमण कर अजातशत्रु को पराजित कर दिया और अपने पुत्री वाजिरा का विवाह अजातशत्रु के कर कशी को दहेज़ के रूप में दे दिया| इसे भी – मगध का उत्कर्ष
लिच्छवी की राजकुमारी चेलना ने अपने दोनों पुत्री हल्ल और बेहल्ल को अनमोल रत्नों का हार और अन्य उपहार दी थी जिसे अजातशत्रु ने वापस माँगा तो चेलना ने देने से इनकार कर दिया| फलतः आजातशत्रु ने अपने मंत्री वर्षकार की सहायत से लिच्छवियों में फुट डालकर उसे भी जीत लिया और अपने मगध साम्राज्य में मिला लिया| इसी प्रकार मल्ल और अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी अवन्ती राज्य को भी पराजित कर लिया|
इसके शासनकाल में ही 468 ई० पूर्व में में महावीर को कैवल्य और 463 ई० पूर्व में गौतम बुद्ध की महापरिनिर्वान (मृत्यु) की प्राप्ति हुआ था| 463 ई० पूर्व में गिरिव्रज की सप्तपर्णी गुफा में प्रथम बौद्ध संगीती का आयोजन किया गया था| इसी संगीती में बौद्ध भिक्षुओं से संवंधित पिटकों को सुतपिटक और विनयपिटक में विभाजित किया गया था|
आजातशत्रु ने मगध पर करीब 32 वर्षो तक शासन किया उनके बाद उदायिन् ने 461 ईसा पूर्व में अजातशत्रु की हत्या कर मगध की राजगद्दी पर बैठा|
उदायिन्
पिता की हत्या करने के कारण उदायिन् को बौद्ध ग्रन्थ की अनुसार पितृहन्ता व जैन ग्रन्थ में पितृभक्त कहा गया है| यह भी जैन धर्म का अनुयाई था| राजा बनाने से पहले चम्पा का उपराजा था, इसके माता का नाम पद्मावाती थी| इसने गंगा और सोन नदियों के बीच पाटलिपुत्र (पटना) को वसाय और उसे अपनी राजधानी वनाया| मगध के प्रतिद्वंद्वी अवन्ती ने गुप्तचर के द्वारा उदायिन् की हत्या करवा दिया| इसे भी – मगध का उत्कर्ष
बौद्ध धर्म ग्रन्थ के अनुसार उदायिन् के तीन पुत्र था अनिरुद्ध, मंडक और नागदाशक| इन तीनों ने शासन किया| अंतिम शासक नागदशक निर्बल और कमजोर शसक था जिस कारण राज्य में विद्रोह हो गया और सेनापति शिशुनाग ने मगध की सत्ता अपने हाथों में ले लिया और 412 ई० पूर्व में मगध पर शिशुनाग वंश की स्थापना कर दिया|
अन्य जनकारी
- अजातशत्रु ने अपने पिता की हत्याकर मगध के राजगद्दी पर बैठा उसके इसी हरकत के कारण हर्यक वंश (haryak vansh) को “पितृहंता” के नाम से भी जाना जाता है!
- अजातशत्रु धरमक उदार सम्राट था विभिन्य ग्रंथो के अनुसार यह बौद्ध और जैन दोनों मत का अनुयाई था| किन्तु भरहुत स्तूप की वेदका पर बुद्ध की वंदना करता हुआ इखाया गया है|
- भारतीय इतिहास में बिम्बिसार ने प्रथम बार स्थाई सेना रखी थी
- बौद्ध भिक्षुओं को निशुल्क में जल यात्रा की अनुमति दी थी
- बिम्बिसार ने बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर वेनुबन दान में दिया था, जिसका वर्णन विनयपिटक में मिलता है