दीपावली पर आतिशबाजी करना हमारे पर्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है केवल दीपावली ही नहीं वल्कि खास मौकों पर भी आतिशबाजी का नजारा देखने को मिलता है| वैसे पटाखे तो कई प्रकार के होते हैं जैसे की फुलझड़ी, रॉकेट आदि किन्तु सभी पटाखों में कुछ विशेषताएँ सामान होती है तो कुछ अलग| यही कारण है की इसके नज़ारे भी अलग-अलग देखने को मिलता है| पर क्या आपने कभी ये सोचा है की ये आखिर ये पटाखे काम कैसे करती है और इसके रंग अलग-अलग क्यों होती है|
पटाखे काम कैसे करती है
फ्यूज के साथ कागजों के अन्दर लपेटे हुए पटाखों के अन्दर पाये जानेवाले मसाले में लगभग 75 प्रितिशत पोटेशियम नाइट्रेट, 15 प्रतिशत चारकोल या शुगर तथा 10 प्रतिशत सल्फर होता है|
और जब फ्यूज जलाते हैं तो पटाखे के अन्दर गर्मी बढ़ जाती है और के बार पर्याप्त गर्मी मिलने के साथ ही सभी समग्री एक दुसरे के साथ रिएक्ट करती है|
फुलझड़ी
फुलझड़ी में केमिकल का मिश्रण होता है जिसे एक कठोर छड़ी या तार में लपेटा जाता है, फिर इन रसाइनों को पानी के साथ मिलाकर एक घोल बनाया जाता है जिसे एक तार पर लेपित किया जा सके या टियूब में भारत जा सके| एक बार जब यह मिश्रण सुख जाता है तो आपकी फुलझड़ी बनकर तैयार हो जाता है और फिर उस पर स्टील, जस्ता या मैग्नीशियम का कण झिलमिलाती चिंगारी पैदा करती है|
रॉकेट
पटाखों के श्रेणी में केवल फुलझड़ी ही नहीं वल्कि रॉकेट भी आता है, आजकल के कुछ मोर्डेन पटाखे गनपाउडर की मदद से चलाये जाते हैं तो वहीँ कुछ पटाखें इलेक्ट्रॉनिक टाइमर का उपयोग कर जलाया जाता है हालाँकि अधिकत्तर रॉकेट बारूद का उपयोग करके ही जलाया जाता है|
पटाखों में रंग का कारण
पटाखों में विभिन्य प्रकार के रंग मेटल साल्ट से आता है यह मेटल साल्ट मूल रूप से गर्म होने पर प्रकाश उत्सर्जित करता है| जैसे की पटाखें में स्ट्रोंटियम साल्ट के कारण लाल आतिशबाजी, तम्बा के कारण नीले तथा बेरियम लवण के कारण हरे रंग का प्रकाश उत्सर्जित करता है|