पल्लव वंश का इतिहास | Pallav vansh History

पल्लव वंश – Pallav vansh

सन् 575 ई० में सिंहविष्णु द्वारा स्थापित पल्लव वंश (pallav vansh) की राजधानी काँची थी| संस्थापक सिंहविष्णु ने लगभग 25 वर्षों तक शासन किया| अपने 25 शासनकाल में चेर, चोल और पाण्ड्य शासकों को युद्ध में पराजित किया जिसकी जनकारी वैलूर के पालैयम ताम्रपत्र से प्राप्त हुई है|

सिंह विष्णु वैष्णव धर्म को मानते थे इन्होने मामल्ल्पुरम में वाराहगुहा मंदिर का निर्माण करवाया था! किरातार्जुनीय के रचनाकार भारवि संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध विद्वान थे, सिंहविष्णु के दरवार में रहते थें|

शासकशासनकाल
सिंहविष्णु(575 से 600 ई०)
महेंद्र वर्मन-1(600 से 630 ई०)
नरसिंह वर्मन-1(630 से 668 ई०)
महेंद्र वर्मन-2(668 से 670 ई०)
परमेश्वर वर्मन-1(670 से 695 ई०)
नरसिंह वर्मन -2(695 से 720 ई०)
परमेश्वर वर्मन-2(720 से 730 ई०)
नन्दिवर्मन-2 यहाँ से पल्लव वंश के सहयोग रहे भीम वंश के लोग शासन करते है|(730 से 795 ई०) भीम वंश
दंतिवर्मन(795 से 847 ई०)
नन्दिवर्मन-3(847 से 872 ई०)
नृपतंग वर्मन(872 से 882 ई०)
अपराजिता वर्मन(882 से 897 ई०)

महेंद्र वर्मन प्रथम

इसके शासनकाल के दौरान पल्लवों और चालुक्यों के बीच संघर्ष शुरू हुआ| चालुक्य नरेश पुलकेशन द्वितीय महेंद्र वर्मन प्रथम को युद्ध में पराजित कर कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया लेकिन पुल्ल्लुर के युद्ध में महेंद्र वर्मन प्रथम ने चालुक्यों को पराजित किया और उत्तरी भाग को छोड़कर शेष भाग पर पुनः वापस ले लिया|

महेंद्र वर्मन प्रथम पहले जैन मतावलंबी था किन्तु अप्पर के प्रभाव से उसने शैव धर्म को अपना लिया| इन्हें मंदिर निर्माण की महेंद्र शैली का जनक माना जाता है इस शैली में गुहा मंदिर, मक्कोडा मंदिर, अनंतेश्वर मंदिर आदि का निर्माण किया गया है|

इन्होने मत्तविलास की उपाधि धारण किये इनको यह उपाधि इसलिए धारण किये की इन्होने ‘मत्तविलास प्रहसन’ नामक हास्य ग्रन्थ की रचना किए| इसके अलावे गुनभर, शत्रुमल्ल, लिलतान्कुर जैसी उपाधियाँ भी धारण किए|

नरसिंह वर्मन प्रथम

सन् 630 ई० में गद्दी पर बैठने वाले नरसिंह वर्मन प्रथम पल्लव वंश (pallav vansh) का सबसे प्रतापी राजा था, इन्होने तीन बार चालुक्य नरेश पुलेकेशन द्वितीय को पराजित किया| इस सफलता से उत्साहित होकर नरसिंह वर्मन प्रथम ने 642 ई० में फिर से चालुक्य शासक पुलकेशन द्वितीय को हराकर चालुक्य की राजधानी वातपी पर अधिकार कर लिया| इस उपलक्ष्य में वात्पिकोंड की उपाधि धारण की, इसी युद्ध में पुलकेशन-2 मी मृत्यु हो गयी|

इन्होने अपने सफल शासनकाल धर्मराज मंदिर, सात पेरू मंदिर तथा एकाश्मक रथ मंदिर का निर्माण करवाया इन्हें सप्तगौढा भी कहा जाता है| इसके अलावे महाम्ल्लपुरम (वर्तमान – महावालिपुरम) नामक नगर वसाया|

नरसिंह वर्मन-1 के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग कांचीपुरम की यात्रा पर आया था|

महेंद्र वर्मन द्वितीय

महेंद्र वर्मन द्वितीय के समय भी चालुक्यों के साथ संघर्ष चलता रहा और अपने दो वर्षों के शासनकाल में चालुक्य शासक विक्रादित्य के साथ हुए युद्ध में महेंद्र वर्मन द्वितीय की मृत्यु हो गयी|

परमेश्वर वर्मन

इसके शासनकाल के दौरान भी चालुक्यों के साथ संघर्ष चलता रहा लेकिन कोई एसी महत्वपूर्ण घटना नहीं हुई| इसने एकमल्ल, लोक्दित्यु, तथा गुनाभाजन की उपाधि धारण किया

नरसिंह वर्मन द्वितीय

इसका शासनकाल भी शांतिपूर्ण रहा अतः इन्होने कई मंदिरों का निर्माण करवाया जैसे काँची के कैलाशनाथ मंदिर, एरावतेश्वर मंदिर, बैकुंठ पेरूमल मंदिर आदि इन्हे मंदिर निर्माण के राजसिंह शैली का जनक माना जाता है| इसके अलावे काँची में संस्कृत महाविद्यालय बनवाया|

दशकुमार चरित की रचनाकार दांडी संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध कवि थे नरसिंह द्वितीय के दरवार में रहते थे| राजसिंह, अगमप्रय तथा शंकर भक्त की उपाधि धारण किया| 720 ई० अपना एक प्रतिनिधित्व मंडल चीन भेजा था|

परमेश्वर वर्मन द्वितीय

परमेश्वर वर्मन द्वितीय ने चालुक्य नरेश विक्रमादित्य द्वितीय के अपमानजनक संधि प्रस्ताव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया अतः विक्रमादित्य द्वितीय ने गंग वंश के सहयोग से परमेश्वर वर्मन द्वितीय की हत्या कर दिया| हत्या के पश्चात कोई योग्य शासक नहीं होने के कारण चालुक्यों ने पल्लव वंश की राजधानी काँची पर अधिकार कर लिया|

पल्लव वंश इसी के साथ समाप्त हो गया किन्तु पल्लव के सहयोगी रहे भीम वंश के कारण पल्लव वंश का क्रम आगे भी चलता रहा और इसी भीम वंश के लोग शासण करते रहें| इस कारण पल्लव वंश का अंतिम शासक के रूप में अपराजित वर्मन को कहा जाता है|

नन्दिवर्मन द्वितीय

परमेश्वर वर्मन द्वितीय की हत्या के बाद सत्ता के लिए गृहयुद्ध छिड़ गया उस परिस्थिति में पल्लव के सहयोग, भीम वंशी शासक नन्दिवर्मन द्वितीय ने सत्ता संभाली और काँची को चालुक्यों से मुक्त कराया| 750 ई० में राष्ट्रकूट वंश के शासक दन्तिदुर्ग, नन्दिवर्मन द्वितीय को हरा दिया और शांति स्वरूप संधि हुई| इस संधि के अनुसार नन्दिवर्मन द्वितीय का विवाह दन्तिदुर्ग की पुत्री रेवा से हुआ|

इसने काँची के मुक्तेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया|

दंतिवर्मन

यह नन्दिवर्मन-2 तथा दन्तिदुर्ग की पुत्री रेवा का पुत्र था| प्रसिद्ध दार्शनिक शंकराचार्य इसी के समकालीन थे|

नन्दिवर्मन तृतीय

इसने पल्लवों की खोई हुए शक्ति को पुनः प्राप्त करने के लिए पाड्यों के साथ युद्ध कर पराजित किया| इसका विवाह राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष की पुत्री शंखा से हुआ|

नृपतंग वर्मन

इसने पांड्य नरेश वरगुण द्वितीय को युद्ध में पराजित किया|

अपराजित वर्मन

यह अयोग्य और कमजोर व अंतिम शासक था| इसी का लाभ उठाकर चोल शासक आदित्य प्रथम ने पल्लव वंश के क्षेत्र को अपने चोल साम्राज्य में मिला लिया| इसके साथ ही pallav vansh अंत हो गया| शुंग वंश के उदय का कारण

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