पाषाण काल प्रागैतिहासिक कालीन इतिहास | Pashan Kal

Pashan kal : पाषण युग यानी पत्थरों का युग, जिस युग में मानव के द्वारा पत्थर के बने औजारों का उपयोग प्रमुखता से किया उस युग पाषण युग कहा जाता है| पाषाण काल (pashan kal) को प्रागैतिहासिक काल में अंतर्गत रखा जाता है क्योंकी इस काल के बारे में जानकारी का स्रोत्र पुरातात्विक साक्ष्य है|

पत्थरों के उपकरण बनाने तथा उसे इस्तेमाल करने का विश्व में सबसे प्राचीनतम साक्ष्य इथोपिया और केन्या से प्राप्त हुई है संभवतः ऑस्ट्रेलोपिथेकस द्वारा सबसे पहले पत्थर के औजार बनाए गए थे, किन्तु इसका श्रेय होमो हैबिलस नामक प्रजाति को दिया जाता है|

भारत में प्रागैतिहासिक संस्कृति व पाषणकालीन वस्तियों की जानकारी की शुरुआत 1863 ई० में जियोलाजिकल सर्वे से संवंधित अधिकारी रॉबर्ट ब्रूसफ्रूड तथा मार्टिन व्हीलर के प्रयासों से हुआ|

1865 ई० में जॉन लुब्बाक ने अपनी पुस्तक ‘प्रीहिस्टोरिक टाइम्स’ में पाषण काल को दो भागों में विभाजित किया था| पुरापाषाण काल और नवपाषाण काल अतः इन दोनों शब्दों पुरापाषाण काल और नवपाषाण काल का प्रयोग सर्वप्रथम जॉन लुब्बाक द्वारा किया गया| लेकिन सामान्य तौर पर इसे तीन भागों में विभाजित किया जाता है|

  • पुरापाषाण काल
  • मध्य पाषाण काल
  • नव पाषाण काल

इन सब के बारे में संक्षिप्त विवरण देने का प्रयास करें तो पुरापाषाण काल में पुरापाषाण कालीन लोग नेग्रिटो जनजाति के थे| लोग खानाबदोश यानी घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करते थें और जीवका मुख्य आधार आखेट यानी की शिकार था हालाँकि आखेटक के साथ-साथ खाद्य संग्राहक होना इस काल की विशेषता है|

कृषि व पशुपालन तथा स्थाई जीवन का प्रारंभ नहीं हुआ था बता दें की आग की खोज पुरापाषाण काल में ही किया गया था किन्तु लोगों को आग का व्यावहारिक उपयोग के बारे में कोई जानकारी नहीं थी अतः जानकारी के आभाव में लोग आग का अधिकता से प्रयोग नहीं कियें और कच्चे मांस ही ग्रहण करते थें| हालाँकि मध्य पूरापाषण युग आते-आते लोगों को आग का सही उपयोग के बारे में जानकारी हो गई|

नोट – दफनाने की प्रथा का पहला साक्ष्य तीन लाख वाढ पहले का है तथा चूल्हे के इस्तेमाल का पहले साक्ष्य 1 लाख 25 वर्ष पहले का है|

पुरापाषाण काल (pura pashan kal)

पुरापाषाण कालीन लोग नेग्रिटो जनजाति के थे| लोग खानाबदोश यानी घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करते थें और जीवका मुख्य आधार आखेट यानी की शिकार था हालाँकि आखेटक के साथ-साथ खाद्य संग्राहक होना इस काल की विशेषता है|

कृषि व पशुपालन तथा स्थाई जीवन का प्रारंभ नहीं हुआ था बता दें की आग की खोज पुरापाषाण काल में ही किया गया था किन्तु लोगों को आग का व्यावहारिक उपयोग के बारे में कोई जानकारी नहीं थी अतः जानकारी के आभाव में लोग आग का अधिकता से प्रयोग नहीं कियें और कच्चे मांस ही ग्रहण करते थें| हालाँकि मध्य पूरापाषण युग आते-आते लोगों को आग का सही उपयोग के बारे में जानकारी हो गई|

पूरापाषण काल के औजार क्वार्टजाइक, शल्क तथा फलक (ब्लेड, पतला पत्थर) आदि से बने होते थे| फलक पैने (तेज) धार बाले औजार होते थे, जिस कारण लोगों ने फलकों का अधिकता से इस्तेमाल किया गया| इसी अधिकता से इस्तेमाल किए जाने के कारण इसे फ़लस संस्कृति भी कहा गया|

भारतीय पूरापाषण काल को मानव द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पत्थर के बने औजारों के स्वरुप और जलवायु परिवर्तन के आधार पर पूरापाषण काल को तीन भागों में विभाजित किया जाता है| 1970 में एडोर्ड लार्टेट ने भी पुरापाषाण काल को तीन भागों में विभाजित किया है|

  • निम्न पुरापाषाण काल (25,00,000 से 1,00,000 ईसा पूर्व)
  • मध्य पुरापाषाण काल (1,00,000 से 40,000 ईसा पूर्व)
  • उच्च पुरापाषाण काल (40,000 से 10,000 ईसा पूर्व)

पूर्व-पुरापाषाण युग या निम्न पुरापाषाण युग  (lower Paleolithic)

अधिकांश पुरापाषाण युग हिम युग से गुजरा, यह पुरापाषाण काल का आरंभिक चरण था, जिसे 25 लाख ईसा पूर्व से 1 लाख ईसा पूर्व तक माना जाता है अतः निम्न पुरापाषाण काल, पाषाण काल (pashan kal) का सबसे लम्बा समय रहा|

नर्मदा घाटी के हथनौरा (मध्य प्रदेश) से 1982 ई० में अरुण सोनकिया ने होमो इरेक्टस (आद्य होमो सेपियन्स) प्रागैतिहासिक मानव की खोपड़ी के साक्ष्य खोजें| यह भारत में खोजा गया प्रागैतिहासिक मानव का प्राचीनतम जीवाश्म है इसके अलावे हथनौरा से हाथी के जीवाश्म मिले हैं| कुल्हडी या हस्त्कुठार (हैण्ड-एक्स), विदारनी (क्लिर), खण्डक (चोपर), यादी इस काल के मानवों द्वारा निर्मित प्रमुख औजारों थे, जिसे ‘कोर’ कहा जाता था|

प्रमुख स्थल – सिन्धु घाटी, असम घाटी, नर्मदा घाटी, सोहन नदी घाटी, उत्तर प्रदेश के बेलन घाटी, नर्मदा घटी, भीमबेटका की गुफाएं, कश्मीर, राजस्थान का थार आदि

मध्य पुरापाषाण काल  (Middle Paleolithic)

इस काल में क्वार्टजाइक, शल्क तथा फलकों (ब्लेड, पतला पत्थर) के सहायता से फलक, खुरचनी, छेदनी, शल्क, जैसे उपकरण बनाए गए जोकि पैने (तेज धार) होते थे| इस काल में फलकों की प्रधानता के कारण एच. डी. सांकलिया ने मध्य पुरापाषाण काल को ‘फ़लस संस्कृति’ का नाम दिया|

मध्य प्रदेश की नर्मदा घाटी, तुंगभद्र नदी के दक्षिणावर्ती इलाके से, मध्य पुरापषाणिक शिल्प-सामग्रियों की प्राप्ति हुई|

उत्तर या उच्च पूरापाषाण काल (Upper Paleolithic)

उच्च पूरापाषाण काल हिम युग की अंतिम अवस्था रही क्योंकि इस युग को आते-आते आद्रता कम हो गई और जलवायु अपेक्षाकृत गर्म हो गई अतः बड़े-बड़े घाष के मैदान बनाने लगें| जिससे खुड़दार पशुओं की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई अतः लोगों को इन पशुओं के बारे में अधिक जानने का अवसर मिला जोकि आगे चलकर कृषि, पशुपालन तथा स्थाई जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई| अधिनुक मानव यानी होम सोपियंस का उदय था चकमक उधोग की स्थापना इस युग के दो प्रमुख विशेषता रही|

उच्च पूरापाषाण काल में उपकरण पत्थर, हड्डियों एवं सिंघों से भी बनाए जाने लगें जोकि चमकीले और काफी तेज धार वाले होते थे| तक्षणी व खुरचनी, हड्डियों से बने महत्वपूर्ण उपकरणों में से थे| गुफाओं में निवास करने लगें, जिस कारण कला के क्षेत्र में नक्काशी और चित्रकारी दोनों कला का विकास हुआ, जिसका साक्ष्य मध्य प्रदेश के “भीमबेटका की गुफाओं” में मलती है|

इस युग के उपकरण बिहार, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, दक्षिण उत्तर प्रदेश से प्राप्त हुए हैं तथा गुजरात के टिब्बा में इसके भण्डार पाए गए जिसमे खुरचनी, तक्षणी, फलक, शल्क आदि प्रमुख हैं|

नोट – भारत में पुरापाषाण काल के लगभग 566 स्थल पाए गए हैं, इनमे से भी  महत्वपूर्ण है, भीमबेटका (नर्मदा नदी के तट पर, मध्य प्रदेश) से प्राप्त सबसे प्राचीनतम चित्रकारी के प्रमाण| इन चित्रों में उन्ही पशु व पक्षियों के चित्र हैं, जिसे प्राय शिकार करते थे|

मध्यपाषाण काल (Mesolithic Age)

हिम युग (पूरापाषाण काल) के अंत के पश्चात मध्य पाषण काल आरम्भ हुआ, इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम होल्डर माइकल वेस्टुप ने किया| भारत के सन्दर्भ में इस काल (madh pashan kal) के उपकरण सर्वप्रथम 1867 ईस्वी में सी. एल. कार्लाइल ने विन्ध्याचल के क्षेत्रों में खोजें|

सराय नाहर राय (प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश) की खोज के. सी. ओझा ने तथा उत्खनन जी. आर. शर्मा द्वारा करवाया गया| यह स्थल काफी महत्वपूर्ण है क्योंकी यहाँ से कई प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं| जैसे –

  • अस्थि-पंजर का सबसे पहले अवशेष
  • मानवीय आक्रमण या युद्ध के अवशेष
  • दो पुरुष और दो स्त्री को एक साथ दफनाए जाने का साक्ष्य
  • स्तम्भगर्त (झोपडी) तथा गर्त-चूल्हे
  • त्रिमानव समाधी (एक ही कब्र में तीन मानवों की समाधि)
  • चार मानव समाधी (एक ही कब्र में चार मानवों की समाधि)

‘आग’ की खोज पूरा-पाषाण काल में हुआ था किन्तु आग का नियमित उपयोग मध्य पाषण काल के अंतिम चरण तथा नव पाषण काल के आरम्भ से होने लगा|

इस काल (pashan kal) में में भी उपकरण पत्थर एवं हड्डियों के प्रयोग से ही बनाए जाते थे किन्तु पुरापाषाण काल की तुलना में ये उपकरण काफी छोटे होतें थे| उपकरण छोटे होने के कारण इसे युग को माइक्रोलिथ या लघु पाषण काल कहा गया| तीर-कमान, नुकीले क्रोड़, त्रिकोण, ब्लेड, ठाठ नवचन्द्राकर आदि इस काल के प्रमुख उपकरण थे|

मध्य पाषाण कालीन स्थल अपने समृद्ध चित्रकारी के लिए प्रसिद्ध रहा जिसका साक्ष्य भीमबेटका, आदमगढ़, प्रतापगढ़ तथा मिर्जापुर में मिलती है| इन चित्रों में मुख्य रूप से पशुओं को दिखाया गया है| पशुओं में कुत्ते को सर्वप्रथम पालतू पशु बनाया गया, पशुपालन का प्राचीनतम साक्ष्य राजस्थान के बघोर व आदमगढ़ एवं मध्य प्रदेश के भीमबेटका से प्राप्त हुए हैं|

कृषि तथा पशुपालन लोगों को स्थाई जीवन के विकास की ओर ले गया क्योंकी कृषि तथा पशुपालन के साथ ही स्थाई जीवन का प्रारंभ हुआ| इस काल के लोग स्तम्भगर्त (झोपडी) बनाकर रहते थे जोकि मधुमक्खी के छत्ते के समान होते थे| इन झोपड़ियों का प्रथम साक्ष्य ‘पैसरा’ से मिला है |

इतिहासकारों का मानना है की “मातृदेवी की उपासना” और “शावाधान” (शवों को दफनाने) की पद्धति” तथा अनुष्ठान के साथ शवों को दफनाने की प्ररम्परा संभवतः इसी काल से शुरू हुई होगी|

3. नवपाषण काल (Neolithic Age)

नवपाषाण या Neolithic शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1865 ई० में जॉन लुबाक ने किया| गार्डन चाइल्ड ने इस काल को नवपाषाण क्रान्ति एवं अन्य उत्पादक संस्कृति कहा| गेहूँ की खोज इस काल (nav pashan kal) के सबसे बड़ी खोज मानी जाती है|

व्यवस्थित ढंग से कृषि एवं पशुपालन होने के कारण स्थाई जीवन का आरम्भ हुआ अतः ग्राम समुदाय जीवन का प्रारंभ हुआ| लोगों के घरों का आकार गोलकार तथा आयताकार होता था, जो मिट्टी और सरकंडो से बनाया जाता था| इस काल में भी उपकरण के लिए लोग मुख्य रूप से पत्थरों पर निर्भर हुआ करते थे अतः अपने घर पहाड़ियों पर या उसके पास ही बनाते थे| 

पशुओं में कुत्ते के बाद भेड़, बकरी आदि को भी पालतू पशु बनाया तथा कृषि के क्षेत्र में सबसे पहले गेहूँ और जौ की खेती की गई| कृषि व पशुपालन के अलावे अनाज को पिसने एवं वस्त्र को सिलने से परिचित थे|

राबर्ट ब्रूस फुट ने नवपाषाण उपकरणों को 78 भागों में बाटा है जिसमे 41 चमकीले या पॉलिश वर्ग के तथा 37 भद्दे (खुरदरे) वर्ग के| पॉलिश की हुई उपकरणों के प्रयोग के कारण इसे पॉलिश किए हुआ उपकरणों की संस्कृति भी कही जाती है|

बुर्जहोम (कश्मीर) से गर्तवास अर्थात लोगो के गढ़े में निवास करने के अवशेष मिलें हैं| जिसकी खोज 1935 ई० में एच. डी. टेरा और टी. टी. पीटरसन ने किया| बुर्जहोम से हीं मालिक के शव के साथ-साथ पालतू कुत्ते तथा भेडियों को भी एक साथ दफनाए जाने का प्रमाण मिला है| इस प्रकार की प्रथा भारत में स्थित अन्य नवपाषाण कालीन स्थलों पर नहीं थी|

मृदभांड सर्वप्रथम नवपाषाण काल से बनने लगे, या मृदभांड हाथों से बनाए जाते थे और बाद में जब चाक का विकास हुआ तो चाक’ का प्रयोग कर मृदभांड बनाए जाने लगा|

वर्तनों में पॉलिशदार काला मृदभांड, धूसर मृदभांड और मंद वर्ण मृदभांड शामिल है अतः स्पस्ट है की नवपाषण काल में कुम्हारगिरी प्रचलन में आया|

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